दलित और बौद्ध समुदाय से पहला CJI: जानिए जस्टिस गवई की कहानी

भारत के पहले बौद्ध CJI बने जस्टिस बी.आर. गवई, देश में खुशी की लहर

Published · By Tarun · Category: Technology & Innovation
दलित और बौद्ध समुदाय से पहला CJI: जानिए जस्टिस गवई की कहानी
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जस्टिस बी.आर. गवई बने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश

14 मई 2025 को न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। यह अवसर भारत के न्यायिक इतिहास में ऐतिहासिक है क्योंकि वे देश के पहले बौद्ध और केवल दूसरे अनुसूचित जाति से आने वाले मुख्य न्यायाधीश बने हैं। इससे पहले जस्टिस के.जी. बालकृष्णन (2007-2010) इस पद पर रह चुके हैं।

शपथ ग्रहण समारोह

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें शपथ दिलाई। इस ऐतिहासिक पल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

सामाजिक और राजनीतिक महत्व

इस नियुक्ति को न्यायपालिका में समावेशिता और सामाजिक न्याय के प्रतीक रूप में देखा जा रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पहले ट्विटर) पर #JusticeGavai और #52ndCJI ट्रेंड कर रहे हैं। उनकी पहचान एक नीयो-बौद्ध दलित के रूप में होने से यह कदम सामाजिक विविधता को प्रोत्साहन देता है।

न्यायमूर्ति गवई का परिचय

जस्टिस गवई का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनके पिता आर.एस. गवई बिहार के राज्यपाल रह चुके हैं और डॉ. आंबेडकर के अनुयायी रहे हैं। उन्होंने 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में करियर की शुरुआत की और 2019 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए।

उल्लेखनीय निर्णय

जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट की उस पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 को हटाने के निर्णय को बरकरार रखा था। यह भारत के संवैधानिक इतिहास का एक मील का पत्थर था।

कार्यकाल और अपेक्षाएँ

उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। यद्यपि यह कार्यकाल छोटा है, लेकिन उनसे न्यायपालिका में पारदर्शिता, न्यायिक सुधार और सामाजिक प्रतिनिधित्व के मुद्दों पर महत्वपूर्ण पहल की उम्मीद की जा रही है।

सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएँ

X पर नेताओं और नागरिकों ने उन्हें बधाई दी। @KTRBRS ने लिखा, "यह दलित और हाशिए के वर्गों के लिए गर्व का क्षण है।" वहीं, कुछ उपयोगकर्ताओं ने न्यायपालिका में सुधार की जरूरतों पर भी चर्चा की।

निष्कर्ष

जस्टिस गवई की नियुक्ति केवल एक संवैधानिक पद भरने का कार्य नहीं है, बल्कि यह भारत की न्यायपालिका में समावेशिता और विविधता की दिशा में एक बड़ा कदम है। उनकी पृष्ठभूमि और विचारधारा भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों को और अधिक मजबूत करने की क्षमता रखती है।