बाहुबली शाह की गिरफ्तारी: गुजरात का अखबार या सरकार की नाराज़गी?
गुजरात समाचार पर ED की छापेमारी और शाह की गिरफ्तारी से मचा हड़कंप


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गुजरात समाचार पर ED की छापेमारी और गिरफ्तारी: सच्चाई या साजिश?
1932 से प्रकाशित होने वाला गुजरात समाचार हाल ही में फिर से चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह इसकी रिपोर्टिंग नहीं, बल्कि इसके दफ्तरों पर हुई छापेमारी और सह-मालिक बाहुबली शाह की गिरफ्तारी है। 14 मई 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) और आयकर विभाग (IT) ने एक साथ अखबार और इससे जुड़े चैनल GSTV पर कार्रवाई की। इस कार्रवाई ने पूरे राजनीतिक और मीडिया हलकों में तूफान खड़ा कर दिया।
क्या है मामला?
गुजरात समाचार और GSTV को संचालित करने वाली संस्थाओं पर मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं। ED ने 16 मई को 73 वर्षीय बाहुबली शाह को गिरफ्तार किया, जिन्हें बाद में स्वास्थ्य कारणों से जमानत मिल गई। ED ने गिरफ्तारी के पीछे के कारणों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया, लेकिन अंदरूनी सूत्र शेयर बाजार हेरफेर, संदिग्ध विदेशी फंडिंग, और SEBI की पुरानी जांचों की ओर इशारा करते हैं।
राजनीतिक घमासान
गिरफ्तारी के बाद विपक्ष ने इसे साफ तौर पर प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अरविंद केजरीवाल और जिग्नेश मेवानी जैसे नेताओं ने X पर तीखी प्रतिक्रियाएँ दीं। राहुल गांधी ने इसे लोकतंत्र की आवाज़ को कुचलने की साजिश करार दिया, जबकि प्रियंका गांधी ने सवाल किया कि क्या सरकार अब न मीडिया चाहती है, न विपक्ष?
केजरीवाल ने इसे बीजेपी की बौखलाहट बताया और कहा कि हर उस आवाज़ को दबाने की कोशिश हो रही है जो सत्ता से सवाल करती है। दूसरी ओर, बीजेपी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, हालांकि कुछ समर्थकों ने आरोप लगाया कि अखबार ने चीन और पाकिस्तान से फंडिंग ली और सेना को बदनाम किया — लेकिन इन आरोपों की कोई पुष्टि नहीं हुई है।
X पर मची बहस
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस विषय ने जबरदस्त हलचल मचा दी है। कुछ इसे पत्रकारिता की आज़ादी पर हमला मान रहे हैं, तो कुछ लोग इस कार्रवाई को कानूनी और सही ठहरा रहे हैं। बहस में गुजरात की दूसरी खबरें, जैसे बॉर्डर सिक्योरिटी, बाढ़ और सड़क हादसे भी शामिल हैं, जो 'गुजरात समाचार' को लगातार ट्रेंडिंग बनाए हुए हैं।
निष्कर्ष
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है: क्या यह वित्तीय गड़बड़ी की जांच है या आलोचनात्मक पत्रकारिता को चुप कराने की कोशिश? जबकि तथ्य अब तक पूरी तरह सामने नहीं आए हैं, यह मामला प्रेस की स्वतंत्रता, सत्ता की जवाबदेही और लोकतंत्र की दिशा पर गहन विमर्श को जन्म दे रहा है।