Harvard को झटका: विदेशी छात्रों पर बैन, जानिए पूरी कहानी
Trump सरकार ने Harvard की विदेशी छात्रों की एंट्री पर लगाया बैन


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हार्वर्ड पर ट्रंप सरकार की बड़ी कार्रवाई: विदेशी छात्रों का भविष्य अधर में
एक प्रतिष्ठित अमेरिकी यूनिवर्सिटी और एक शक्तिशाली प्रशासन के बीच जब टकराव होता है, तो पूरी दुनिया उसका असर महसूस करती है। ऐसा ही हुआ है Harvard University के साथ, जिसे हाल ही में अमेरिकी ट्रंप प्रशासन ने विदेशी छात्रों को दाखिला देने से रोक दिया है।
22 मई 2025 को अमेरिकी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) ने यह फैसला सुनाया। इसका सीधा असर उन करीब 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर पड़ा है जो Harvard में पढ़ाई कर रहे हैं। खासकर भारत और चीन के हजारों छात्र, जो अपनी शिक्षा के सपनों के साथ अमेरिका पहुंचे थे, अब खुद को असमंजस में पा रहे हैं।
टकराव की जड़ें कहां हैं?
ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय यहूदी विरोधी माहौल, प्रो-हमास समर्थक गतिविधियों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से कथित संबंधों को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही, यूनिवर्सिटी पर यह भी आरोप है कि वह सरकार द्वारा मांगे गए डेटा—जैसे कि विदेशी छात्रों के विरोध प्रदर्शनों से जुड़े रिकॉर्ड—मुहैया नहीं करा रही।
इसके चलते हार्वर्ड का SEVP सर्टिफिकेशन रद्द कर दिया गया, जिससे वह विदेशी छात्रों को वीज़ा पर एडमिट नहीं कर सकती। विश्वविद्यालय को 72 घंटे की मोहलत दी गई थी कि वो जरूरी रिकॉर्ड सौंपे, लेकिन जवाब में Harvard ने संविधान का उल्लंघन और राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।
छात्रों की चिंता और दर्द
भारतीय छात्रा श्रेय मिश्रा रेड्डी, जिन्होंने $50,000 का लोन लेकर एडमिशन लिया था, कहती हैं, "अब समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या होगा। मैं लगभग ग्रेजुएट होने वाली थी।" चीन की छात्रा कैट झी और बेल्जियम की प्रिंसेस एलिज़ाबेथ जैसे कई नामी छात्रों के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।
कुछ छात्रों ने खुद को सोशल मीडिया पर “Harvard Refugee” तक कहा है। कई दूसरे देशों की यूनिवर्सिटी—जैसे कि हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी—इन छात्रों को नए मौके देने की पेशकश कर रही हैं।
Harvard का पलटवार
Harvard ने सरकार के फैसले को "गैरकानूनी" और "लोकतंत्र विरोधी" बताया है। यूनिवर्सिटी के प्रेजिडेंट एलन गारबर ने अपनी सैलरी का 25% फिर से दान कर दिया है ताकि विश्वविद्यालय को आर्थिक संकट से उबारा जा सके। साथ ही 80 प्रोफेसरों ने भी अपनी सैलरी का हिस्सा देने की घोषणा की है।
क्या है अगला कदम?
एक अस्थायी राहत के रूप में कोर्ट ने सरकार के फैसले पर स्टे लगा दिया है। पर लड़ाई अभी जारी है। दूसरी ओर, DHS की सचिव क्रिस्टी नोएम का बयान भी अहम है—“यह सिर्फ शुरुआत है, बाकी विश्वविद्यालय भी लाइन में हैं।”
सोशल मीडिया पर हंगामा क्यों?
एक और वजह जिसकी वजह से Harvard X (पूर्व Twitter) पर ट्रेंड कर रहा है—वह है अफवाह कि Baron Trump (डोनाल्ड ट्रंप का बेटा) को Harvard ने एडमिशन देने से इनकार कर दिया था। हालांकि यह पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन X पर इस अफवाह ने आग में घी डालने का काम किया है।
निष्कर्ष: Harvard का मामला केवल एक विश्वविद्यालय का मुद्दा नहीं है—यह अंतरराष्ट्रीय छात्रों, शिक्षा की स्वतंत्रता, और अमेरिका की वैश्विक छवि से जुड़ा सवाल बन चुका है। आगे आने वाले दिनों में यह टकराव और गहराएगा या सुलझेगा—यह अदालत और नीति निर्धारकों के निर्णय पर निर्भर करेगा। लेकिन फिलहाल, हजारों छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है।