NuclearLeak: भारत-पाक तनाव के बीच सामने आई बड़ी खबर
पाकिस्तान में परमाणु रिसाव की अफवाहें, सोशल मीडिया पर हंगामा


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पाकिस्तान में परमाणु रिसाव की अफवाहों से सोशल मीडिया में हड़कंप
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर ‘#NuclearLeak’ हैशटैग अचानक ट्रेंड करने लगा है। इसकी शुरुआत 12–13 मई 2025 के बीच हुई जब भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच कुछ असत्यापित रिपोर्ट्स सामने आईं। इनमें दावा किया गया कि भारत की ओर से चलाए गए एक सैन्य अभियान 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान के कुछ वायुसेना ठिकानों जैसे नूर खान और सरगोधा पर हवाई हमले किए गए।
इन हमलों को लेकर यह भी अफवाह है कि वे पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों के नजदीक हुए और इससे रेडिएशन लीक की स्थिति बनी। हालांकि, अभी तक किसी भी देश या अंतरराष्ट्रीय संस्था ने इस प्रकार की किसी घटना की पुष्टि नहीं की है।
अफवाहों को हवा देने वाले मुख्य दावे
भारतीय हवाई हमले और परमाणु ठिकानों पर प्रहार: कई पोस्ट में दावा किया गया है कि भारतीय वायुसेना ने नूर खान और सरगोधा बेस पर हमला किया, जो परमाणु कार्यक्रम से जुड़े क्षेत्रों के पास स्थित हैं।
स्थानीय लोगों में रेडिएशन के लक्षण: कुछ उपयोगकर्ताओं ने दावा किया है कि उत्तरी पाकिस्तान में लोगों को थकान और मतली जैसे लक्षण हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप: सोशल मीडिया पर अमेरिकी B350AMS विमान की पाकिस्तान में मौजूदगी और चीन तथा मिस्र की ओर से बोरॉन की आपूर्ति का उल्लेख किया गया है।
NASA सैटेलाइट इमेजरी का दावा: एक पोस्ट में नासा द्वारा पकड़े गए “थर्मल सिग्नेचर” का उल्लेख है, हालांकि ऐसी कोई सार्वजनिक रिपोर्ट नहीं है।
भूकंप और 'न्यूक्लियर ब्लैकमेल': पाकिस्तान में आए 4.6 तीव्रता के भूकंप को भी रिसाव से जोड़ने की कोशिश की गई है। कुछ यूज़र्स इसे ‘न्यूक्लियर ब्लैकमेल’ भी बता रहे हैं।
सच्चाई क्या है?
अब तक किसी भी देश (भारत या पाकिस्तान) या अंतरराष्ट्रीय संस्था (IAEA आदि) ने परमाणु रिसाव की पुष्टि नहीं की है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ट्रेंड अफवाहों, सामाजिक मीडिया की सनसनी और राजनीतिक तनावों के चलते वायरल हुआ है।
विश्लेषण
- सोशल मीडिया पर चल रही पोस्ट्स में कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
- सरकारी चुप्पी और मीडिया की रिपोर्टों की कमी से अफवाहें बढ़ीं।
- ऐसे दावे सामरिक और वैश्विक शांति को खतरे में डाल सकते हैं।
निष्कर्ष
‘#NuclearLeak’ ट्रेंड सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों का नतीजा लगता है। बिना प्रमाण के इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर यकीन करना खतरनाक हो सकता है। जब तक भारत, पाकिस्तान या कोई भरोसेमंद संस्था इस पर आधिकारिक बयान नहीं देती, तब तक इन दावों को केवल अटकलें ही माना जाना चाहिए।